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बीस रुपये में चुदईया हजारों कहानियाँ हैं अन्तर्वासना डॉट कॉम पर !
Posted by Unknown
Posted on 19:55
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श्रेया आहूजा का आप सबको मनस्कार ! यह कहानी मेरे पड़ोसी की है। हम दोनों काफी आत्मीय हैं तो उसने यह आपबीती मुझे सुनाई... वही मैं आपके सामने पेशा कर रही हूँ, उम्मीद है आपको अच्छी लगेगी। बात उन दिनों की है जब मैं बैंक में जॉब कर रहा था और मेरी पोस्टिंग पटना में हुई थी। पटना शहर मुझे काफी अच्छा लगा पर जुगाड़ का कोई ठिकाना नहीं था। जहाँ मैं चाय पीने जाता था, वहाँ पर एक बन्दे को बोलता सुना कि पटना चिड़ियाघर यानि जैविक उद्यान में केवल बीस रुपये में चूत मिलती है। मैंने सोचा कि बस फेंक रहा है। यह कैसे संभव है कि इस बढ़ती महंगाई में चूत इतनी सस्ती... लेकिन यह बात सच साबित तब हुई जब मेरे एक सहकर्मचारी ने बताया की उसे भी बीस रुपये में चूत मिली है। उसने बताया कि जैविक उद्यान के बाहर बैठी बंजारी लड़कियाँ बीस रुपए लेकर चुद जाती हैं। मैंने भी खुद जाकर असलियत पता लगाने की ठानी। एक दोपहर मैं इसी चक्कए में पटना जैविक उद्यान पहुँच गया और उसके गेट के बाहर घूम रहा था। वहाँ कुछ बंजारे लोग तो थे पर कैसे पूछता कि चुदाई करनी है, चूत दोगी। तभी एक बच्चा रहा होगा कोई दस साल का आकर मेरे से पूछा- मेरी दीदी को घुमाने ले जाओगे? मैं हक्का बक्का रह गया, मैंने उसकी दीदी की तरफ देखा... तो देखता ही रह गया ! गोरी सी पतली सी भूरी भूरी आँखों वाली... कोई बीस बाईस साल की लड़की वहीं पास में खड़ी थी... जब मैंने उसे देखा तो वो खुद मेरे पास आ गई... मैंने इधर उधर देखा कि कोई जान पहचान का तो नहीं है, फिर मैंने पूछा- तुम्हारा नाम क्या है? उसने बोला- मेरा नाम कुसुम बंजारन है... फ़िर उसने कहा- आप चिड़ियाघर में घूमने जान चाहो तो मैं घुमा दूँगी। मैं- कितना लोगी? कुसुम- अरे साहब, जो दे दो ! मैंने सोचा पहले तय कर लिया जाये क्यूंकि बाद में कोई लफड़ा न हो... सो वही तय हुआ बीस रुपये में ! मैंने उसका और अपना प्रवेश टिकट कटवाया और हम दोनों अन्दर घुस गए... देखा वो कुछ बाहर खड़ी बंजारा औरतों और आदमी को इशारा कर रही थी... जैसे दो उंगलियों में एक उंगली घुसा कर... इशारा चुदाई का था, मैं समझ गया ! हम दोनों अन्दर गए... मयूर रेस्टोरेंट है अन्दर, वहाँ हम दोनों ने कोल्ड ड्रिंक लिया... घूमने आये अन्य लोग हमें देख रहे थे क्यूंकि मैं शर्ट पैंट में था और वो लड़की ऊपर एक कुर्ता और नीचे एक लम्बी सी स्कर्ट घाघरा पहने हुई थी... कपड़े पुराने थे... मैले सिलवटों वाले... कुसुम- साब, चलो एक जगह ले कर चलती हूँ आपको ! मैं उसके पीछे चल दिया... वो एक सुनसान गार्डन में ले आई मुझे... एक बड़ी सी झाड़ी के अन्दर हम दोनों घुस गए... कुसुम- साब पहले बीस रुपये... वर्ना काम करवाने के बाद कोई झिक झिक नहीं ! मैंने झट से बीस रुपये थमा दिए... कुसुम- साब, पहले लाण्डिया चुसूँ या फिर सीधा ही... मैं थोड़ा हिचकिचाया... कुसुम- साब कोई नहीं आता यहाँ... आराम से चुदैइया कर सकते हो... मैंने डरते हुए अपना लंड पैंट के बाहर निकाल लिया। कुसुम- क्या साब आप तो लौण्डिया के माफिक शरमाते हो? यह बोलते हुए उसने मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया... वो उसे चूसने लगी... पहली बार थी मेरी... मैं मदहोश होने लगा था ! वो मस्त चूस रही थी... और अपने उँगलियों से मेरे गोल गोल गोलियों से खेल रही थी। मैं- अहह... अहह... बस ! मुँह में ही मुठ लोगी क्या...? कुसुम- निकाल दो साब, आपने रुपये किस बात के दिया है ... आपकी हूँ, कुछ भी करो मेरे साथ ! मैं- चल कपड़े खोल... तेरी चुदाई करनी है... कुसुम- नहीं साब, सारे कपड़े मत खोलना.. अगर गारद साब आ गए तो भागना पड़ता है। मैं- फिर चुदाई कैसे करूँ... कुसुम- साब आप लंड बाहर ही रखो मैं अपने कपड़ों को ऊपर उठा लेती हूँ। मैं- और कोई आ गया तो? कभी कोई आया है? कुसुम- हाँ साब, एक बार आ गया था... एक गारद था... मैं- फिर? कुसुम- फिर क्या साब... वो जो साब लाये थे वो तो भाग गए लेकिन वो उस गारद रात भर मेरी चुदईया किया था। मैं- यार, तुम लोग हो कौन? और आये कहाँ से हो? कुसुम- साब हम लोग पहाड़ी लोग हैं... बंजारे हैं... कोई ठौर ठिकाना नहीं ! आज हियाँ कल कहीं और... मैं- और करते क्या हो? कुसुम- जो बंजारन जवान है चुदईया से कमाती है और जो बंजारन बूढी है है वो बर्तन मांज कर ! मैं- और मर्द? कुसुम- मर्द लोग... साले बच्चे से बड़े... सब दल्ले हैं... हम लोगां की कमाई पर खाते और दारू पीते हैं। मैंने सोचा- क्या इंटरव्यू लूँ इसका... उसका घाघरा उठाया और अपनी गोद में बैठा लिया। कुसुम- साब अपने कंडोम पहन लिया ना? मैं- अरे तुझे तो सब पता है... हाँ पहन लिया, चल अन्दर ले ले ! कुसुम- साब, तेरह बरस से चुदवा रही हूँ अब तो सात साल हो गया इस पेशे में ! यह कहकर वो मेरी गोद में बैठ गई... और लंड सरकते हुए उसके बुर में डाल दिया। कुसुम- आह साब, थारा लाण्डिया बड़ा है... अहह ! आराम से घस्से मारो ना ! उसके लाख मना करने पर भी मैंने उसका कुर्ता उतार दिया... न उसने ब्रा पहनी थी न ही पैंटी... उसके छोटे छोटे नुकीले चूचे मैं चूसने लगा... कुसुम- साब अहह ! ये मती... आह... करो.. अहह... मैं यह भूल गया कि हम दोनों दोपहर में खुले मैदान में चोदम-चुदाई कर रहे हैं... देखते देखते हम दोनों एकदम नंगे गए... मैं उसकी जांघों को फैला कर अपना लंड घुसेड़ने लगा... उस बंजारन के शरीर पर कोई बाल नहीं था... एकदम चिकनी... लग ही नहीं रहा था की सिर्फ बीस रुपये की माल है... मैं घस्से मारे जा रहा था... उसके लब चूसने लगा... मैं चरमोत्कर्ष पर ही था, तभी देखा, दो आदमी आ गए ! पहला आदमी- लगे रहो गुरु ! दूसरा- डरो मत, हम भी वही हैं जो तुम हो... उनके साथ भी एक बंजारन औरत आई थी... कुसुम- साब कहा था कपड़े मत खोलो, देखा ना.. मैं- अरे वो भी चोदने लाये हैं एक बंजारन को... आदमी- कितने में लाये इसको? मैं- बीस रुपये में ! आदमी- ठगे गए... ऐसी ऐसी दस की भी देती है... ये देख तीस की है... हम दो जने चोदेंगे इसको ! दूसरा आदमी- चल तू लगे रह गुरु ! कुसुम- अरे माई है मेरी... उसका बड़ा सा मोरा है ! बंजारन चिल्लाई- अबे रंडी... चुदवा ले खामोश रह के ! जादा बोली तो सोट्टा बड़वा दूंगी छोरे नै कह के ! कुसुम ने भांडा फोड़ दिया था, वो कुसुम की माँ को चोदने लाये थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। मैं घस्से मारे जा रहा था... मजे के साथ बात भी कर रहा था... सोच रहा था कि क्या हो रहा है यह एकदम खुल्लम खुल्ला... दो लोग जो आये थे... उन्होंने भी उस बंजारन को नंगी किया और एक ने अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया और दूसरे ने उसके बुर में डाला !
बंजारन- अरे नंगा न कर ... दोनों माँ बेटी थोड़े दूर में चुद रही थी... मैंने जोर से कुसुम की गांड को पकड़ा... और सारा माल उसकी बुर में निकाल दिया। मैंने कंडोम उतार कर फ़ेंका और जल्दी से अपने कपड़े पहन लिए। कुसुम अभी भी नंगी थी... जो आदमी उस बंजारन की बुर चोद रहा था वो अपना लंड निकाल कर कुसुम के पास आ गया और उसका हाथ पकड़ लिया। कुसुम- मेरा हाथ छोड़ .. आदमी- तेरी बुर छोटी है न तेरी माँ से.. चल तेरे को ही चोदता हूँ.. कुसुम- कल आना, आज और नहीं चुदवाना ! आदमी- तू जानता नहीं... मैं कौन हूँ... सलीम नाम है... पास के थाने में कांस्टेबल हूँ ! बंजारन- साब आप मेरे कोई चोदो न, उसे जाने दो। सलीम- चुप कर रांड, तेरी बेटी को तो मुफ्त में चोदूँगा। कुसुम- कुसुम मुफ्त में तेरे को बुर क्या गाली भी नहीं देगी मैं ! सलीम ने उसे वही नंगी अवस्था में घुमाया और कुतिया स्टाइल से चोदने लगा... कुसुम- अहह माई ! वहीं माई मेरा मतलब उस बंजारन औरत को दूसरा आदमी चोदने लगा। सलीम- साब चलते बनो अब !. ये बंजारन की कोई औकात नहीं, दो रुपये में भी चुदवा सकती है। मैंने अभी कुसुम को चोदा था और फिर से चुदवाने बैठ गई... देखा एक जोड़ा फिर आ गया... बंजारन थी और एक बूढ़ा ! सलीम घस्से मारते हुए- शाम हो रही है अभी तो चुदाई और चलेगी... खूब चोदा है इन बंजारनो को ! बहुत लोग आते हैं... इनका चूल्हा हमारे पैसों से जलता है। मैं जल्दी जल्दी वहाँ से भाग निकला। मैंने सोचा भी नहीं था कि यहाँ इतना खुल्लम खुल्ला सेक्स चलता है। वहीं इतने महंगाई में इतनी सस्ती चूत ! यकीन नहीं आ रहा था। फिर कभी वहाँ जाने की हिम्मत नहीं हुई... दो बार उस जगह से गुज़रा हूँ... एक बार कुसुम को अपने छोटे भाई बहनों से खेलते देखा था, दूसरी बार किसी ग्राहक से बात करते ! वाह रे ज़िन्दगी, क्या क्या दिखा और क्या क्या सीखा देती है... मेरी आपबीती कैसी रही श्रेया जी को बताना... अन्तर्वासना को धन्यवाद मेरी आपबीती आप तक पहुँचाने के लिए। अरविन्द महतो हजारों कहानियाँ हैं अन्तर्वासना डॉट कॉम पर !anisha1koi@gmail.com

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