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कारनामा पूरा ना करने की सजा

सवेरे फिर मित्र से बात हुई... वो बोले- रात में जो नहीं कर सकी… मैं बीच में टोकते हुए बोली- सॉरी ! वो बोले- नो सॉरी, नो ! इसकी सजा मिलेगी ! जब स्कूल में मैं काम करके नहीं ले जाती थी तब भी मुझे सजा मिलती थी, आज उसकी याद आ गई, मैंने कहा- ठीक है.. मुझे मंजूर है ! क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करती तो वे मुझे रोज नये नये करतब करने को नहीं बताते ! मैं सजा भुगतने के लिए मान गई क्योंकि मैं जानती थी कि सजा में भी अब मुझे मज़ा लेना है। वे बोले- आज तुम्हें और श्रेया को घर की छत पर साथ में दोपहर का खाना खाना होगा.. मैंने कहा- इसमें क्या खास बात है, थोड़ी धूप है तो गर्मी ही लगेगी। मुझे लगा कि वो धूप में खाना खाने की सजा दे रहे हैं...मैंने एकदम हाँ कर दी। वो बोले- पहले पूरी बात तो सुन लो ! तुम दोनों को खाना ऊपर छत पर एक चटाई बिछाकर खाना है... हमारी छत काफ़ी अच्छी साफ़ सुथरी है, काफ़ी बड़ी है और साइड की दीवार भी चार फीट की है, मैं बोली- इसमें कोई बड़ी बात नहीं.. वो बोले- कारनामा पूरा सुन लो पहले... रात में तो कोई भी नंगा होकर छत पर जा सकता है, अंधेरे में तो कोई भी कुछ भी कर सकता है.. आज तुम्हें खाना कल रात वाली अवस्था में खाना है... मैं डर गई, बोली- मतलब? वो बोले- कोई भी कपड़ा पहने बिना... ब्रा तक नहीं और पैंटी भी नहीं ! मुझे एकदम ऐसा लगा कि किसी ने मुझे जबरन नंगा कर दिया हो... मैंने कहा- कोई आ गया, किसी ने देख लिया तो? अब सर्दी शुरु हि गई है तो लोग धूप सेकने भी छत पर आ जाते हैं? वो बोले- बाहर मेनगेट को लॉक कर देना ! और हाँ सब समान उसी अवस्था में ऊपर तक ले जाना है... ऊपर ले जाने तक ठीक था पर छत पर मैं श्रेया के साथ नंगी? पर कैसे.. और मैं अपनी इच्छा से तो कुछ भी कर सकती थी... पर श्रेया को कैसे कहूंगी? मैंने उनसे कहा- श्रेया को मैं जबरदस्ती तो नहीं कर सकती ना ! वो बोले- सजा तो सिर्फ़ तुम्हारी है, श्रेया अपनी इच्छा से इस खेल में शामिल होने चाहे तो ठीक है। लेकिन अगर दोनों मिल कर यह कारनामा करेंगी तो मज़ा दस गुना हो जायेगा। श्रेया नहा कर तैयार थी, मैंने उसकी पसंद की पनीर की सब्जी बनाई.. उसके बालों में तेल लगाया.. उससे बात करते करते कहा- आज मैंने तेरी पसंद की पनीर की सब्जी बनाई है, साथ में राजमा भी.. और तभी मैंने दूधवाले की भी बात उसे बता दी.. वो बोली- मधुरेखा जी, अगला करतब आप मेरे सामने करना, मैं देखना चाहती हूँ। तभी मैंने कहा- तो चलो, आज हम दोनों करते हैं, वही जो मैंने अकेली ने रात में किया.. वो एकदम खड़ी हो गई- ना बाबा, किसी ने देख लिया तो मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी ! मैं बोली- कोई नहीं देखेगा, पूरी बात सुनो, आज दोपहर को हम दोनों पूरी नंगी होकर अपना खाना ऊपर छत पर लेजा कर खायेंगी और गाउन पहनकर वापिस आ जायेंगी, बड़ा मज़ा आएगा.... वो बोली- आप करो, मैं देखूँगी ! वो नहीं मानी, अब क्या, मेरा भी थोड़ा मूड ऑफ हो गया था, मैंने उसस समझाया कि हमारा घर आसपास सबसे ऊँचा है, दीवार भी काफ़ी ऊँची है। किसी के देख लेने का कोई डर नहीं है। पर वो इसके लिए तैयार नहीं हुई। मुझे तो करना ही था, श्रेया इसमें मेरी पूरी मदद करने को तैयार थी। सबसे पहले मैं ऊपर छत पर जाकर देख आई, कोई नहीं था आसपास की छतों पर... मन ही मन जगह पक्की की.. एक जगह पर दीवार की वजह से थोड़ी छाँव थी, वही जगह चुनी। मैं श्रेया से कुछ नाराज़ थी.. उसने मेरी बात नहीं मानी... मैं चुपचाप बर्तनों में एक एक करके खाना लगाने लगी। वो समझ गई मेरी नाराजगी, फिर वो बोली- मैं मदद करती हूँ.. मैंने कहा- नहीं, मैं खुद सब कर लूंगी, सन सामान ऊपर जाऊँगी, तुम बस मेरे साथ खाना खाना पूरे कपड़े पहन कर ! सब बर्तन एक जगह पर रख कर मैंने गहरी सांस ली और एक झटके में अपना काला गाउन उतार दिया.. अंदर ब्रा में मेरे हमेशा थोड़े लटकते उरोज पूरे खड़े हो गये थे, उन्हें भी पता था आज कितना डरावना काम है.. पूरी काया में जैसे बिजली की तेज़ लहरें बह रही थी... श्रेया देख रही थी, मैंने वहीं डायनिंग टेबल पर ब्रा खोल कर रख दी... फ़िर पैंटी भी... तब मेरे शरीर पर कुछ नहीं था, उसने मेरा थोड़ा सहयोग करना चाहा पर मैंने उसे रोक दिया... चटाई उठाई, सीधा ऊपर जाने लगी, वो बोली- मैं सामान ला रही हूँ। मैंने कहा- प्लीज़... उसे समझ आ गया कि मुझे गुस्सा आ रहा है...पर उसका तो यह काम भी नहीं था... मेरी सज़ा थी... मैंने छत के दरवाजे पर पहुँच कर झुक कर नीचे से ही चटाई फेंक कर बिछा दी। फिर नीचे जाकर सब बर्तन छत के दरवाजे के पास सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर रखने थे, और वहाँ से छत पर रेंगते हुए आगे का सफ़र... मैं एक एक करके सब बर्तन ऊपर ले आई, हर चक्कर में वो मेरे साथ थी.. वो मेरी मदद करना चाहती थी पर मैं गुस्सा थी.. मेरा बदन पसीने से भीग गया था लगातार कई चक्कर चार मंजिली छत के लगा कर ! पर मैंने हार नहीं मानी.. सब बर्तन ऊपर ले आने के बाद अब सबसे मुश्किल काम था उन्हें ले जा कर चटाई पर रखना.. मैंने श्रेया से कहा- तुम चटाई पर बैठ जाओ... वहाँ वो बैठ गई। खाली प्लेटें मैंने उसकी ओर फेंकी... डिनर सेट प्लास्टिक का है, इसलिए आवाज़ नहीं हुई। वहाँ श्रेया के अलावा कोई नहीं था, मुझे सब ले जाना था.. मैंने रोटी का बर्तन लिया, नीचे बैठ कर धीरे धीरे चटाई तक पहुँची, उसे श्रेया ने पकड़ लिया.. वैसे ही मैं वापिस..फिर चावल का डोंगा..वैसे ही फिर अचार, सलाद की प्लेट, लड्डू का कटोरा.. अब सिर्फ़ दो ही बर्तन थे, एक पनीर की सब्जी और दूसरा राजमा... मैंने सोचा कि एक चक्कर में ही दो ले जाऊंगी क्योंकि हर चक्कर में मुझे नीचे की गरम छत का स्पर्श होता तो तकलीफ़ होती... मैंने एक हाथ में राजमा का बर्तन लिया और पनीर की सब्जी का डोंगा बायें हाथ में, दोनों डोंगे ऊपर तक भरे हुए थे इस लिए नीचे होकर घुटनों पर बैठ कर धीरे धीरे चलने लगी छोटे बच्चे की तरह.. अब बीच में मेरा स।तुलन बिगड़ा गया... श्रेया बोली- आंटी संभल कर.. धीरे से उसकी आवाज़ आई.. उस गड़बड़ में जल्दी जल्दी में और डर के कारण मेरा बायां निप्पल अचानक पनीर की सब्जी में एकदम डूब कर बाहर निकल आया। ओह माँ... मेरे मुख से चीख निकल गई पर मैंने खुद को संभाल लिया, श्रेया दौड़ कर मेरे पास आ गई... उसने बर्तन पकड़ लिए, ले जा कर चटाई पर रख दिए, मैं वहीं नीचे पीठ के बल लेट गई, उठ ही नहीं सकी थी... श्रेया ने देखा पर मैं पानी नहीं लाई थी। मैं जलन से तिलमिला रही थी... उसने झट से अपने मुँह में मेरा बायाँ निप्प्ल लेकर चूस-चाट कर जीभ से सब्जी साफ कर दी... यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। फिर भी दर्द हो रहा था... मेरे आँखों से पानी निकल आया था, श्रेया ने मेरी दोनों आँखें पौंछ दी... शायद यह कल का कारनामा पूरा ना करने की सज़ा होगी... भगवान दी होगी... श्रेया मुझे चटाई तक लाई, बोली- मैं अभी बर्फ़ लेकर आती हूँ... आप ऐसा क्यों किया.. सॉरी, मेरी ग़लती है.. मैंने कुछ भी नहीं कहा.. चुपचाप हाथ में निप्पल पकड़कर आँखें बंद कर ली। वो फ़िर बोली- मैं थोड़ी आइस लाती हूँ.. मैंने मना किया तो वो बोली- पानी तो लाना है ना.. आप रुकिये... मैं आँखें बन्द करके लेटी रही ! पाँच मिनट बाद एकदम मुझे अपने निप्पल पर कुछ ठंडा सा लगा, एकदम आराम मिला, सुकून मिला... आँखें खोली तो श्रेया मेरे निप्पल पर बर्फ़ लगा कर बैठी थी और उसने भी... कुछ भी नहीं पहना था, वो पूरे कपड़े नीचे उतार कर आई थी... उसका गोरा बदन धूप से लाल हो रहा था... मुझे बुरा लगा, मैंने कहा- अरे मुझे गुस्सा तुम पर थोड़े ना आया था.. मुझे तो अपने पर गुस्सा था कि कल का करतब मैं पूरा ना कर सकी, इसलिए मैंने अपने निप्पल को सजा दी। बर्फ़ से बड़ी राहत मिली मुझे...मैं उठ कर बैठ गई... अब हम दोनों जन्मजात नंगी आपने सामने बैठी थी। फिर हम दोनों ने आराम से खाना खाया, बिना कुछ बोले, सिर्फ़ एक दूसरे को देख रहे थे, वो मेरी चूचियों को, मैं उसकी चूचियों को.. वो मेरी योनि को देखती तो मैं छुपाने का असफ़ल प्रयास करती, मैं उसकी चूत को देखती तो वो छुपाने का प्रयास करती। हम दोनों के स्तन बिना ब्रा के भी तने खड़े थे... खाना 15-20 मिनट में ख़त्म हो गया, ज़्यादा देर रुकना ठीक नहीं था... हाथ धोए, लड्डू भी खाया.. उसकी माँ ने बनाए थे बेसन के लड्डू... तब सोचा चलो अब नीचे... पास रखे गाउन पहन लिए नीचे रह कर ही.. फिर एकदम खड़ी हो गई दोनों ! पहले तो नीचे इधर उधर देखा, कोई नहीं दिखा... मन को तसल्ली हुई... सब बर्तन समेटे और नीचे आ गए। बर्तन रसोई में रख कर दोनों धड़ाम से बेड पर लेट गई... और हंसने लगी.. वो तो मानो छोटी बच्ची की भान्ति मुझ से लिपट गई.. बोली- थैंक्स... उसे भी इस खेल में बहुत मज़ा आया था। अब भी थोड़ी जलन है मेरे चुचूक सा में ! अब जब मैं इस घटना को कहानी का रूप दे रही हूँ तो बीच भीच में श्रेया मुझे पुकार रही है अपने पास बुलाने के लिये- मधुरेखा ! ओ मधु ! आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ते रहिये अन्तर्वासना पर मेरी सच्ची कहानियाँ ! 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