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वो एक दिन
Posted by Unknown
Posted on 21:03
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anisha1koi@gmail.com प्रेषिका : श्रद्धा वैद्य नमस्ते दोस्तो, मैं आज राघव नाम से कथा लिख रही हूँ। मेरा नाम राघव है उम्र 25 साल। बात काफ़ी पुरानी है, हमारे घर में तब किरायेदार आये, उन्हें मैं रेखा ऑन्टी और राजेश चाचा कहता था, वो बहुत ही अच्छे स्वभाव के थे। चाचा बहुत सीधे आदमी थे, ऑन्टी की उम्र लगभग 30 साल होगी फिर भी वो बहुत सुंदर दिखती थी। चाची का रंग गोरा था और सेहत बहुत अच्छी थी, आँखें बड़ी बड़ी थी, वो बहुत ही आकर्षक थी। उनका मेरे साथ काफी अच्छा बर्ताव था। चाची के बारे में कभी मैंने गलत नहीं सोचा था। चाचा की दुकान थी। हमारे पिछले वाले आंगन में सबके लिये बाथरूम बने थे। एक दिन मैं अचानक रात में चाची के बाथरूम में पेशाब के लिये गया तब मैंने देखा कि रस्सी पर एक अलग सा वस्त्र रखा है जो तब तक मैंने नहीं देखा था। मेरे मन में उसको छूने की लालसा हुई। वो मुझे अजीब सा लगा उसमे दो बेल्ट थे जो कंधे पार से आते होंगे और पीछे हूक थे सामने दो कटोरियाँ थी... मुझे याद आया जब ममा घर पर नहीं थी और मेरी तबियत खराब थी तब ऑन्टी ने मेरा खयाल रखा था तब उनके ब्लाऊज से पीछे से उनके वो वस्त्र दिखा था एक बार तो उसका बेल्ट तक ऊपर से मैंने देखा था जो चाची के कंधे पर बाहर निकला था... एक बार चाची के दोनो वक्षों के बीच की रेखा मैंने देखी थी, दूध से सफेद वक्ष थे उनके... मुझे उस वस्त्र को चूमने की इच्छा हुई, मैं खुद को रोक नहीं पाया और मैंने चाची की ब्रा के निप्पल चूसने शुरू किये। अजीब सी स्वाद था, पर एकदम मजा आ गया मैं अंदर से भी चूस रहा था... तब मैंने महसूस किया कि मुझे पेशाब आ रहा है पर इस बार मुझे पेशाब करते बड़ा दर्द हो रहा था, मेरे उससे सफेद स कुछ गाढ़ा सा तरल निकला और मेरे पैर एकदम अकड़ गये... तभी मेरेमन में बहुत अपराध भाव सा आया, मैंने ब्रा को बाथरूम में नीचे गीले में डाल दिया। रात भर मेरा मन नहीं लगा... दूसरी रात फिर मैं पेशाब के बहाने उठा और फिर एक बार मैंने वही कार्यक्रम किया, आज भी वही गाढ़ा सफेद सा पदार्थ निकला लेकिन आज मुझे मजा आया... दो दिन खाली गये... फिर इतवार को मेरे घर वाले शादी के लिये चले गये, आन्टी भी कहीं बाहर गई थी.. मैंने मौका पाकर उनकी ब्रा बाथरूम निकाल ली.. मैंने घर के सब दरवाजे बंद कर दिये और फिर एक तकिया लेकर उस पर वो ब्रा हूक लगाकर लगा दी, उसके चुच्चों की जगह पर मैंने दो कटोरियाँ रख दी, बीच में ऑन्टी की तस्वीर जो मैंने जानबूझ कर मेरे भाई के जन्मदिन पर खींची थी, वो रख दी... अब मैं सोच रहा था कि मैं रेखा ऑन्टी के उरोज चूसूँगा, पर कटोरियाँ सख्त लग रही थी, मैंने उनको निकाल कर दो गुब्बारे फुला कर रख दिये और अपने सब कपड़े उतार दिये। अब मैं बिल्कुल नग्न था, सामने बिस्तर पर रेखा ऑन्टी ब्रा में थी, मैंने प्यार किया उनकी तस्वीर को, होंठों को चूसा फिर चूचे समझ कर उनकी ब्रा को उतार कर आँखें बंद कर गुब्बारे चूसने लगा, पर मजा नहीं आया। अब मैंने एक गुब्बारे पर थोड़ा शहद और दूसरे पर थोड़ी चटनी डाल कर चूसा, बड़ा ही अच्छा स्वाद था। बड़ा अच्छा लगा... अब मुझे लगा कि मेरे लुल्ले से इस बार भी कुछ निकलने वाला है, मैं जल्दी से बाथरूम जाने लगा पर थोड़ा सा कमरे में ही गिर गया.. मैंने जल्दी से वो साफ कर दिया... अब मुझे रेखा ऑन्टी की आदत हो गई थी। जब वो घर के पिछवाड़े में बर्तन मांजती, तब मैं उन्हें लैट्रिन के दरवाजे में जो मैंने छेद बनाया था, उससे देखता रहता.. बर्तन धोते धोते वो जब झुकती, तब उनके सुंदर से उभार दिखाई देते और मैं अंदर मजा लेता... काफी दिनों तक मैंने ऐसा ही किया। अब मैं रोज उनके बारे में सोचता, बस मेरे लिये वो सब कुछ थी। वो पिछवाड़े में गई नहीं कि मैं झट से वहाँ भागता और उनको ही देखता रहता। एक दो बार तो गलती से उनके ब्लाउज के बटन खुल गये तब मुझे उनके ब्रा में दर्शन हो गये, मैं धन्य हो गया। एक दिन छुट्टी थी, मेरे ममा पापा और अंकल, ऑन्टी ने बाहर जाने का प्रोग्राम बनाया, मैंने कह दिया कि कल मेरा टैस्ट है, मैं नहीं आ सकता, वो चले गये... मैंने फिर जाकर ऑन्टी की ब्रा ले ली, आज उसके साथ में एक कच्छी देखी, मैंने वो भी उठा ली... कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया... आज मैंने ऑन्टी की ब्रा को हाथ तक नहीं लगाया, ऑन्टी की कच्छी को मैंने आज पहली बार देखा.. अच्छी लगी मुझे, उसमें से मुझे कुछ बू सी आ रही थी, उसको सूंघने का मन हुआ, मैंने सूंघा, अजीब सी महक थी.. बिल्कुल अलग... फिर ऐसा लगा कि चूस लूँ, लेकिन गंदा लगा... तभी एक तरकीब मेरे मन में आई... मैं छत पर चला गया वहाँ ऑन्टी का नीले रंग का सुंदर ब्लाउज़ सूखने के लिये टंगा था और उनकी नीली साड़ी भी थी, साथ में उनका पेटिकोट था, वो भी ले लिया, एक थैली में नीचे झुक कर भर लिया कि कोई देख न ले... फिर नीचे आया, मैंने आज ठान लिया था कि मैं खुद रेखा बन कर देखना चाहता था... मैंने अपने सब कपड़े उतार दिये... अपने आपको ऐसे देखा, अलग सा लगा... फिर मैंने रेखा ऑन्टी की चड्डी एक बार चूस ली... अब मैं उनके जैसा बनना चाहता था... तभी ख्याल आया कि अगर मेरा सफेद पानी निकल गया तो मुश्किल हो जायेगी... कहीं उसके धब्बे साड़ी या पेटिकोट पर न पड़ें... मैंने कुछ सोचा, किचन में गया, वहाँ प्लास्टिक की छोटी थैली थी... उसको अपने हाथ में लेकर अपना लिंग उसके अंदर डाल कर धागे से बराबर लपेट कर बंद कर दिया। अब कोई परेशानी नहीं थी... अब मैं रेखा बन जाने वाली थी... मैंने अपना मुँह धोया, कई बार मैंने रेखा ऑन्टी को तैयार होते हुए देखा था... बस वही सोचकर मैंने अपना मुंह धोया, ममा के मेकअप बॉक्स से निकाल कर क्रीम लगाई, पाउडर लगाया... रेखा ऑन्टी जैसी लगाती थी, वैसे ही बिंदी लगाई, लिपस्टिक लगाई, आँखों में थोड़ा लाइनर लगाया... अब मेरे ध्यान में आया कि मैंने कपड़े तो पहने ही नहीं थे। मैं बेडरूम में गया, वहाँ जाकर रेखा ऑन्टी की कच्छी पहनी, थोड़ी बड़ी थी तो मैंने नाड़े से बान्ध ली... अब ऊपर उनकी ब्रा पहनी, पर पीछे के हुक लग नहीं रहे थे, तभी bra घुमा कर हुक लगाए, बेल्ट ऊपर कंधे पर लिये, पर मेरे उभार रेखा जितने नहीं थे, तभी सोचा क्या करूँ... दो गुब्बारे फुलाये पार वो बड़े हल्के थे, तभी मैंने गुब्बारे में थोड़ा थोड़ा दूध डाल दिया, फिर फ़ुलाये और अच्छी तऱह बान्ध कर ब्रा के अंदर रख दिया... अब मैंने रेखा का पेटिकोट पहना उसका नाड़ा बान्ध लिया... अब मैंने ब्रा के ऊपर ऑन्टी का नीला ब्लाउज़ पहना.. उसका गला बड़ा था मेरी ब्रा दिख रही थी, मैंने उसे नीचे खींचा.. गुब्बारे भी नीचे खींचे... अब अच्छे से ब्लोउसे के बटन लगा दिए, नीचे का बटन नहीं लग रहा था... तभी थोड़ी सांस अंदर ली और लग गया... मुझे अलग सा लग रहा था, मैंने आईने में अपनी पीठ देखी, सुंदर दिख रही थी, खुद को आईने में देखा बहुत सुंदर लग रहा/रही थी... पर बाल छोटे थे... तभी याद आया कि मम्मा का नकली बालों का गुच्छा था.. दौड कर लाया... वो मैंने बराबर अपने सर पर बिठा दिया... अब मैं बिलकुल रेखा लग रहा /रही थी... बड़े बड़े वक्ष थे मेरे... जब मैं चलती थी तब उनमें का दूध उछलता था बड़ा मजा आ रहा था... मेरा लिंग तो कड़क हो गया था। तभी मैंने रेखा की साड़ी लपेटी, मुझे साड़ी पहनना नहीं आता था पर ममा को कई बार देखा था, वैसा कर लिया और अपने सर पर पल्लू रख लिया... रेखा हमेशा अपना पल्लू बराबर बीच में रखती थी टाकि उनके दोनों उभार हर किसी को दिखें... मैंने भी वैसा ही किया... मैं बहुत सुंदर लग रहा था। अब सोचा कि मैं रेखा के साथ जो करुंगा, वही आज मैंने अपने साथ करने की ठान ली... मैं घूंघट लेकर पलंग पर बैठ गया... तभी ऐसा सोचा कि आज मेरी सुहागरात है... मैंने खुद ही अपना घूंघट खोल धीरे धीरे कपड़े उतार दिये। अब मैं ब्रा और कच्छी में था... मजा आ रहा था... मैंने ऐसा सोचा कि मैं रेखा के दोनों बूब्स चूसुँगा... मैंने ब्रा उतार दी... गुब्बारे बाजू में रख दिये... पर मेरे निप्पल कौन चूसता... तो मैंने ही अपने हाथों से उन्हें खींचा पर वो बहुत छोटे थे.. तभी मैंने वैक्यूम क्लीनर लगाया और उससे अपने निप्पल चुसवाए। बड़ा मजा आया पर मैं जो रेखा के साथ करना चाहता था वही आज मैं अपने साथ कर रहा था... मैंने चिमटा लेकर वो निप्पल पार लगाया उससे उनको खींचा, ऐसा लगा कि रेखा के ही निप्पल मैं खींच रहा हूँ। मैंने और मजा करने की ठान ली... अब मैंने एक मोमबत्ती ली... उसे जला दिया... उसे एकदम से बुझा कर झट से अपने निप्पल पर लगा दिया.. उई माँ ! बहुत गरम लगा, मोम झट से सख्त हो गया.. अब दूसरे निप्पल की बारी थी... उस पर भी वैसा हीकिया... पर अब निप्पल में जलन होने लगी। तभी फ़्रिज से बर्फ निकाल कर एक एक टुकड़ा निप्पल पर रख कर नीचे लेट गया... थोड़ी देर बाद अच्छा लगा... अब मैंने नीचे देखा तो नीचे की पोलीथीन की थैली मेरे सफ़ेद गाढ़े पानी से भर गई थी.. मैंने हल्के से उसे निकाला... सब कपड़े उतार दिये... सब सामान जगह पर रख दिया... अपने गाढ़े पानी को थोड़ा सा लेकर रेखा के ब्रा के अंदर बराबर लगा दिया... रेखा के निप्पल जहा आयेंगे, वहाँ वहाँ अपना रस लगा कर पंखे के नीचे सुखाने को रख दी, सब कपड़े वापस जाकर छत पर रख दिये। अभी भी मेरे निप्पल में दर्द हो रहा था.. उस पर थोड़ा नारियल तेल लगा दिया... आज पहली बार मैं रेखा बना था.. मुझे अच्छा लगा... आपको यह कहानी कैसी लगी, जरूर लिखें। हजारों कहानियाँ हैं अन्तर्वासना डॉट कॉम पर !
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