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गोवा की मंजू

anisha1koi@gmail.com प्रेषक : कृष्णा पवार मैं अन्तर्वासना की हर एक कहानी पढ़ चुका हूँ और मुझे सब अच्छी लगी। अब मैं एक सच्ची कहानी आपके सामने पेश करने जा रहा हूँ। मैं 35 साल का हट्टा कट्टा नौजवान हूँ, महाराष्ट्र में रहता हूँ। जब मैं गोवा शहर में रहता था, तबकी कहानी है। मेरी ट्रान्सफर गोवा शहर में हुई थी और मैं अकेला ही गोवा में रहता था। कम्पनी की तरफ से मुझे एक फ्लैट मिल गया था। काफी बड़ा फ्लैट था और मेरे पास वहाँ सब घरेलू सामान था, मैं खुद ही खाना बनाता था लेकिन कुछ दिनों के बाद मुझे खाना बनाना बोर लगने लगा और मैं बाहर खाना खाने लगा। कुछ दिनों के बाद बाहर खाना भी मुझे बोर लगने लगा। फिर मैंने सोचा कि क्यों ना कोई खाना बनाने वाली को रख लूँ, वह घर भी साफ़ रखेगी और बर्तन भी साफ़ कर देगी। इसलिए मैंने हमारे घर की मालकिन को कहा- कोई खाना बनानी वाली हो तो मुझे बताना ! उसने कहा- इस गोवा शहर में खाना बनाने वाली कहाँ मिलेगी? एक काम करो, तुम रोज हमारे साथ ही खाना खा लिया करो ! पहले तो मैंने ना कर दी फ़िर उसने कहा- पैसे के बार में सोच रहे हो? मैंने कहा- हाँ ! तो उसने कहा- शरमाओ मत, उसके बदले तुम हमारा बाहर का काम कर दिया करो, जैसे बाज़ार से कुछ लाना है, बिल भरना है जो कुछ ! तो मैंने हाँ कर दी। पहले से ही मालकिन की लड़की देखकर मेरे मन में लड्डू फूटने लगे थे, मैंने उसको जब पहले दिन देखा था, तब मेरे होश उड़ गए थे ! क्या माल है, गोरा बदन, नीली आँखें, शरीर भरा हुआ ! मैं उसको देख कर होश खो बैठा और रात में उसके नाम की मूठ मारने लगा। अब मेरा खाने का इंतजाम हो चुका था, सुबह चाय और नाश्ता, दोपहर का टिफ़िन और रात का खाना उन्हीं के साथ ! पहले ही दिन सुबह चाय के लिए गया तो मालकिन चाय बना रही थी, उसकी 20-21 साल की लड़की मंजू पेपर पढ़ रही थी। मैंने सोचा कि चलो जान पहचान कर लेते हैं और मैंने हिम्मत करके उसको पूछा- तुम क्या काम करती हो? तो उसने कहा- मैं एअरपोर्ट ऑफिस में काम करती हूँ। मैंने पूछा- घर में बाकी लोग कहाँ हैं? तो उसने कहा- पिताजी और भैया दुबई में काम करते हैं और वो साल दो साल में एक बार ही आते हैं। मैंने सोचा- चलो रास्ता साफ़ है। आंटी ने चाय और नाश्ता दिया और मैं टिफ़िन लेकर ऑफिस के लिए निकल गया। जैसे ही मैंने गाड़ी चालू की, आंटी ने कहा- बेटा, ऑफिस जा रहे हो तो मंजू को भी साथ लेकर जाना, रास्ते में ही एअरपोर्ट ऑफिस पड़ता है, उसे छोड़ दो ! तो मैंने तुरंत हाँ कर दी। मंजू पीछे गाड़ी पर बैठ गई। रास्ते में मैंने उससे कहा- तुम्हारा कोई बॉय फ्रेंड है क्या? तो उसने कहा- नहीं, आज तक मेरे कोई बॉय फ्रेंड नहीं रहा ! तो मैंने उसे पूछा- क्यूँ? "मेरे कॉलेज में मेरे साथ मेरे भैया भी पढ़े हैं और ऑफिस में मेरे सगे चाचा काम करते हैं, वह मुझे कहीं घूमने जाने नहीं देते थे और वही मेरा और मेरे घर का ध्यान रखते हैं। उतने में ही उसका ऑफिस आ गया और मैं अपने ऑफिस आ गया। बार बार मुझे मंजू की ही याद आ रही थी और काम में भी मन नहीं लग रहा था। मैं ऑफिस से घर आ गया, फ्रेश होकर मैं रात का इंतजार होने लगा। शाम होते ही मैं खाना खाने के लिए नीचे गया और मेरा ही इंतजार हो रहा था। आंटी ने कहा- जरा जल्दी आया करो, हमें भूख लगी थी ! वैसे मंजू आपको बुलाने आ ही रही थी। मैंने चुपचाप खाना खाया और मंजू को थोड़ा देख रहा था। आंटी ने कहा- इसे अपनी ही घर समझो, शर्माओ नहीं ! खाना खाकर मैं चलने लगा तो आंटी ने कहा- सुबह थोड़ा जल्दी आना, मुझे बाहर जाना है। सुबह जल्दी तैयार होकर चाय नाश्ते के लिए नीचे आया तो देखा कि आंटी जा रही हैं। मैंने कहा- आंटी आप बाहर जा रही हैं तो मैं बाहर चाय पी लूँगा और बाहर ही खाना खा लूँगा ! आंटी ने कहा- नहीं, मैंने चाय और नाश्ता बनाकर रखा है, तुम चाय नाश्ता करके, टिफ़िन लेकर जाना और मंजू को ऑफिस छोड़ देना। और आंटी चली गई। मंजू मुझे देखकर नाश्ता लाने गई और मैं उसको पीछे से देखने लगा। उतने में ही वह चाय लेकर आई और मुझे कहा- क्या देख रहे थे? मैं डर गया, मैंने कहा- कुछ नहीं। तो मंजू ने हंसकर कहा- चलो ऑफिस छोड़ दो मुझे। मैंने कहा- ठीक है, तुम तैयार हो जाओ ! मैं भी तैयार होकर आता हूँ। उसको देख कर मेरा मन ख़राब होने लगा, मैं ऊपर आकर अपने पूरे कपड़े निकाल कर मुठ मारने लगा और जैसे मेरे पिचकारी बाहर आई, मैं अपने कपड़े पहनकर नीचे आया। मंजू बाहर मेरा इंतजार कर रही थी, मैं बोला- आपको देर हो गई क्या? वह ना का इशारा करती गाड़ी पर बैठ गई। थोड़ी दूर जाते ही उसने मुझसे चिपकते हुए कहा- तुम ऊपर किसलिए गए थे। मैंने कहा- कुछ नहीं, ऐसे ही थोड़ा काम था। "थोड़ा या बहुत जरूरी?" मैं समझा नहीं। उसका ऑफिस आते ही उसने कहा- कपड़े निकाल कर क्या काम था? मैं घबरा गया और वह चली गई। मैं समझ गया कि मंजू ऊपर आई थी और उसने चुपके से देखा। पर मुझे लगा कि ठीक हुआ जो उसने मुझे देख लिया। मछली खुद जाल में फंस रही है। शाम को हमेश की तरह मैं घर जल्दी आया, खाना खाने के लिए मैं नीचे आया, देखा कि आंटी खाना बना रही हैं। आंटी ने कहा- थोड़ी देर बैठो, खाना बनने में थोड़ी देर है। तब तक आप टीवी देखो। मैं और मंजू टीवी देख रहे थे। मंजू मुझ पर हंस रही थी, मैंने कहा- क्या हुआ? तुम क्यूँ हंस रही हो? तो उसने कहा- सुबह तुम क्या कर रहे थे? तो मैंने कहा- क्या करें, कोई गर्ल फ्रेंड नहीं हो अपने हाथ से ही काम चलाना पड़ता है। तो उसने कहा- मेरा भी कोई बॉय फ्रेंड नहीं। मुझे भी मेरे हाथ से ही काम चलाना पड़ता है। मैंने कहा- तुम भी? तो उसने कहा- क्यूँ, मुझे भी इच्छा होती है कुछ करने की। तो मैंने कहा- आग दोनों तरफ है, क्यूँ न इस आग को बुझाएँ? तो उसने कहा- तुम खाना खा लो, तुम्हारा इंतजाम खुद हो जायगा। मैंने कहा- कैसे? उसने कहा- देखते जाओ। आंटी ने खाना लगा दिया और हम सब खाना खाने बैठे। आंटी ने कहा- मैं मंजू के अंकल के साथ उनके बेटे के लिए लड़की देखने जा रही हूँ, और जाने आने में लगभग तीन दिन लग जाएँगे, तब तक तुम मंजू का धयान रखना और जो भी मंजू खाना बनाए, खा लेना, उसे अब तक खाना ठीक से बनाना नहीं आता।तो मैंने कहा- ठीक है आंटी, मैं मंजू को खाना बनाना सिखा दूँगा। आंटी ने कहा- ठीक है। और आंटी गाँव जाने की तैयारी करने लगी। और मैं सवेरा का इंतजार करने लगा। रात भर मैं सो न सका और मंजू के बारे में सपने देखता रहा। जैसे ही सवेरा हुआ, मैं फ्रेश होकर नीचे आया तो आंटी गाँव जा चुकी थी और मंजू शायद मेरे इंतजार कर रही थी। मैंने उसे गुड मॉर्निंग करके स्माइल दी। उसने भी मुझे गुड मोर्निंग करके एक स्माइल दी। मंजू चाय लेकर हॉल में आई। कहाँ से शुरू करूँ, मुझे समझ नहीं आ रहा था और डर भी लग रहा था। मंजू भी चुपचाप चाय पी रही थी शायद उसे भी डर लग रहा था। आखिर मैंने मंजू को चिड़ाते हुए कहा- तुमने कल क्या देखा? वह शर्माई और बोली- जो तुम कर रहे थे। मैं बोला- क्या? तो बोली- अपने हाथ से ! तो मैंने बोला- तो क्यूँ न आज तुम्हारे हाथ से करते हैं। वह धत्त करती हुई रसोई में भाग गई। अब मैं कहाँ रुकने वाला था, मैं सीधा उसके पीछे भागा और उसको पीछे से पकड़ लिया और कहा- तुमने मेरा जवाब नहीं दिया? कहकर उसको गर्दन पर चूमा। उसे एकदम जोर से करेंट सा लगा और मुझे भी ! वह डर गई और बोली- मुझे डर लग रहा है। तो मैं उसे आराम से उठाकर बेडरूम लेकर आया और कहा- इसमें डरने की क्या बात है, सब लड़कियाँ तो यह करती हैं। उसने कहा- यह सब शादी के बाद होता है, ऐसा थोड़े ही होता है। "यह सब शादी से पहले भी होता है !" यह कह कर उसके होंठों पर अपने होंठ रगड़ने लगा। वह भी मेरा साथ देने लगी और लगभग दस मिनट ऐसे चूमा चाटी करते रहे। फिर उसने कहा- हॉल का दरवाजा खुला है, पहले आप बाहर जाओ और किचन के दरवाजे अन्दर आओ ! शायद किसी ने तुम्हें अन्दर आते हुए देखा हो। मैं चुपचाप बाहर गया। उसने अन्दर से दरवजा बंद कर लिया। और मैं ऊपर जाने के रास्ते सीधा पीछे से किचन के दरवाजे के पास खड़ा हो गया, मंजू ने दरवजा खोला और जैसे ही मैं अन्दर आ गया, उसने दरवाजा बंद कर दिया और जोर जोर से मुझे चूमने लगी। मैं समझ गया बहुत जोर से आग लगी है, मैं उसका साथ देते हुए फिर से बेडरूम तक गया। फिर मैं उसके बदन पर हाथ फ़ेरते हुए सीधा उसके चुच्चे दबाने लगा।ओह आहा आहा आहा आहा करते उसने अपना टीशर्ट निकाल फेंका और मैं उसके दोनों चुचूक चूसने लगा और वो बारी बारी एक एक चुसवा रही थी। आखिर उसने अपनी पतलून खुद ही निकाल कर फेंक दी और नीचे इशारा करने लगी।मैंने भी उसके लाल पैंटी को एक मिनट भी उसके बदन पर रखी नहीं और मेरे सामने वह पूरी नंगी खड़ी थी। फिर मैंने उसे पलंग पर लिटाया और सीधा उसके दोनों पैरों के बीच में अपना मुँह ले गया। जैसे मैंने उसकी चूत पर अपनी जीभ रखी, उसने जोर से मेरा सर पकड़ लिया और अपनी चूत चाटने में मेरा सहयोग दे रही थी और मजे ले रही थी। उसने मेरा सर जोर से दोनों हाथों से पकड़ लिया और झड़ गई। मैंने उसका सारा पानी अपनी जीभ से चाट ली। थोड़ी देर वह वैसे ही पड़ी रही और मैं उसके चुचूक चूसता रहा। फिर मंजू खड़ी हो गई और मेरे सारे कपड़े निकाल कर मेरे लंड से खेलने लगी। थोड़ी देर में उसने मेरा लंड मुँह में लिया और चाटने लगी। मैं हैरान हुआ कि यह तो चाटने में एकदम उस्ताद है। वह मेरा लण्ड चाटती जा रही थी। एकदम से मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उसे कहा- मेरा वीर्य निकलने वाला है। उसने फिर से मेरा लंड पकड़ लिया और कहा- तुमने जैसे मेरा रस पिया है, वैसे ही मुझे तुम्हारा रस पीना है। मेरा लंड उसने फिर से चूसना शुरु कर दिया और मैं उसके मुख में ही झड़ गया। उसने पांच मिनट तक पूरा लण्ड चाट कर साफ़ कर दिया और मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया। मैंने उसे पलंग पर लिटाया और उसकी चूत पर लंड रख कर जोर से धक्का दिया। वह तड़पने लगी और कहने लगी- बाहर निकालो, निकालो ! उसे ज्यादा ही दर्द होने लगा। मैं थोड़ी देर रुका और कहा- शुरु शुरु में थोड़ी तकलीफ़ होती है, फिर मजा आता है। और उसे किस करने लगा, और थोड़ा थोड़ा करते एक जोर का झटका दिया और मेरा लंड सीधा उसके अंदर ! अब मंजू जोर जोर से चीख रही थी और मेरे झटके चालू थे। थोड़ी देर में वह भी मेरा साथ देने लगी और कहने लगी- फक मी ! फक मी ! करीब दस मिनट तक मैं उसे चोदता रहा और हम दोनों साथ में ही झड़ गए। थोड़ी देर बाद हम ऐसे ही सो गए। फिर मेरा मन कहाँ मानने वाला था, आधी रात में मैंने उसे एक बार चोदा। सबह मैंने कहा- आज दोनों ऑफिस से छुट्टी कर लेते हैं और खाना-पीना भी बाहर ही कर लेंगे। उसने कहा- चलो, यही चांस है, ऑफिस में अंकल भी नहीं हैं और घर में मम्मी भी नहीं ! फिर हम दोनों बाहर गए, नाश्ता-खाना बाहर खा लिया, पिक्चर देखने गए। और फिर शाम को उसकी गांड मारने का मन किया, मैंने उसे कहा- मुझे आज रात तुम्हारे साथ सोना है और रात भर करना है और एक ख़ास बात ! मंजू ने कहा- क्या बात है? मैंने कहा- मुझे तुम्हारी गांड मारनी है। मंजू राज़ी हो गई- जो मारना है, मारो ! तीन दिन के लिए मैं तुम्हारी पत्नी ! पूरे तीन दिन तक मैं मंजू को चोदता रहा और मैंने उसके गांड भी मारी। आपको मेरे कहानी कैसे लगी, मुझे बताओ। anisha1koi@gmail.com हजारों कहानियाँ हैं अन्तर्वासना डॉट कॉम पर !
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